एनआरसी पर पूरे देश में क्यों मचा है घमासान?

 एनआरसी पर पूरे देश में क्यों मचा है घमासान?

  • एक दूसरे पर आरोप लगा रहे राजनीतिक दल
  • गृहमंत्री शाह बोले, पूरे देश में लागू करेंगे NRC
  • असम सरकार ने एनआरसी रद्द करने की मांग की
  • जनगणना 2021 की भी शुरू हुई तैयारी
  • केंद्र सरकार तैयार कर रही ड्राफ्ट
  • 1951 में हुई थी देश की पहली जनगणना
  • हर दस साल में ही क्यों होती है जनगणना?

देश में एक तरफ 2021 में होने वाली जनगणना की तैयारी की जा रही है.. वहीं एनआरसी को लेकर पूरे देश में माहौल गर्म है... पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर तीखे आरोप लगा रहे हैं... कोई इसे धर्म विशेष के खिलाफ बता रहा है... तो कोई कह रहा है कि एनआरसी की देश को जरूरत है... ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या है एनआरसी... और जनगणना से इसका क्या है संबंध.



 नेशनल सिटिजन रजिस्टर यानि एनआरसी असम में रहने भारतीय नागरिकों की पहचान के लिए बनाई गई एक सूची है.. जिसका मकसद राज्य में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों खासकर बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करना है.. इसकी पूरी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही थी... इस प्रक्रिया के लिए 1986 में सिटीजनशिप एक्ट में संशोधन कर असम के लिए विशेष प्रावधान किया गया.. इसके तहत रजिस्टर में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 के पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं... अभी तक तो एनआरसी केवल असम में लागू हुई थी.. लेकिन इसे अब पूरे देश में लागू करने की योजना है.. इसकी हामी अभी हाल ही में गृहमंत्री भर चुके हैं.. सन 1951 की देश में पहली बार हुई जनगणना के दौरान एनआरसी बनाया गया था.. इसमें गांव में रहने वाले लोगों का विवरण तैयार किया गया था. एनआरसी ने डेटा में व्यक्ति का नाम, आयु, पिता/ पति का नाम, घर के पते के साथ आजीविका का साधन शामिल किया था.. केंद्र सरकार ने 1951 की जनगणना के दौरान डिप्टी कमिश्नर और उप-मंडल अधिकारियों को इस काम की जिम्मेदारी भी सौंपी थी.


आपको बता दें कि जनगणना एक सामान्य प्रक्रिया है जिसमें देश में रहने वाले लोगों की गिनती होती है.. वहीं एनआरसी में साबित करना पड़ता है कि आप देश के नागरिक हैं.. 2021 की जनगणना के बाद जनता को एनआरसी में अपना नाम दर्ज करवाना होगा.. इसके बाद ही वो देश की नागरिक बन पाएंगे. आइये अब आपको बताते हैं कि जनगणऩा क्यों, कब और कैसे होती है... जनगणना को अंग्रेज़ी में सेंसस कहते हैं.... आज़ाद भारत में पहली जनगणना 1951 में हुई थी... उसके बाद से हर दस साल में जनगणना होती है... जनगणना में लोगों की आर्थिक स्थिति, उनकी शिक्षाघर और घरेलू सुविधाएं, जन्म दर, मृत्यु दर, भाषा, धर्म, जाति, अलग-अलग इलाकों में पलायन जैसी कई जरूरी जानकारियां इकट्ठी की जाती हैं... इसमें टाइम तो लगता ही है, इसमें खर्च भी बहुत होता है. इसलिए 10 साल में एक बार जनगणना होती है..

अब आपको बताते हैं कि जनगणना में क्या किया जाता है.. इसके लिए सबसे पहले सवाल तय किये जाते हैं. जैसे नाम, उम्र, लिंग, शिक्षा, कमाई, कमाई का ज़रिया बेसिक सवाल हैं. इसके अलावा और भी सवाल होते हैं. सवाल तय होने के बाद उन्हें फॉर्म्स के रूप में प्रिंट किया जाता है. सरकारी कर्मचारियों को चुना जाता है. उन्हें प्रॉपर ट्रेनिंग दी जाती है. इसके बाद ये कर्मचारी सवालों की पर्ची लेकर घर-घर जाते हैं. घरवालों से पूछकर सवालों वाला फॉर्म भरते हैं. यानि जानकारियां इकट्ठी करते हैं.. सेंसस ड्यूटी में लगे लोगों के पास एक अपॉइंटमेंट लेटर और आइडेंटिटी कार्ड होता है. जो इस बात का सबूत होता है कि वह जनगणना के काम से आपके घर आए हैं. आप उनसे उनकी आइडेंटिटी कार्ड दिखाने को कह सकते हैं... जनगणना के लिए हर घर से दो फार्म भरे जाते हैं. इसमें सबसे पहले हाउसिंग सेंसस होता है. इसमें घर, घर के उपयोग, पीने के पानी और शौचालय की उपलब्धता, बिजली, संपत्ति आदि से संबंधित सवाल होते हैं. इसके बाद राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से संबंधित सवाल होते हैं. इस सेक्शन में भी कई जानकारियां मांगी जाती हैं.


वहीं जनगणना में एक अहम सवाल डेटा सिक्योरिटी का भी है.. बीते साल आधार डेटा की सुरक्षा पर काफी सवाल उठे थे. फेसबुक और वॉट्सऐप जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर सरकारों की कड़ी नज़र है... कि कहीं वो यूजर के डेटा का गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहे... ऐसे में जनसंख्या के लिए जुटाए जा रहे डेटा की सिक्योरिटी को लेकर लोगों का चिंतित होना भी लाज़िम है. सरकार के मुताबिक, सेंसस डेटा पूरी तरह सीक्रेट होता है.... इसे किसी भी सरकारी या प्राइवेट एजेंसी से शेयर नहीं किया जा सकता... हालांकि, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से संबंधित कुछ जानकारी का इस्तेमाल सरकार जांच आदि में कर सकती है. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के फाइनल ड्राफ्ट के डेटाबेस का इस्तेमाल सिर्फ सरकार कर सकती है.... फिलहाल देखना अहम होगा कि एनआरसी पर उठा बवाल कब तक खत्म होता है.. और केंद्र सरकार जनगणना और एनआरसी के बीच किस प्रकार से संतुलन बिठा पाती है..                                                  (संपादन- सचिन शर्मा)

About Prime TV

0 komentar:

Post a Comment