आज PM Modi करेंगे चौरी चौरा(Chauri Chaura) के शताब्दी समारोह का उद्घाटन

 चौरीचौरा के स्वाधीनता संग्राम को उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों को भी चौरीचौरा के शहीदों की वीरगाथाएं किताबों में पढ़ने को मिलेंगी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर माध्यमिक शिक्षा विभाग ने चौरीचौरा की घटना को यूपी बोर्ड के पाठ्यक्रम में शामिल करने की कवायद शुरू की है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर माध्यमिक शिक्षा विभाग चौरीचौरा की घटना को पाठ्यक्रम में शामिल कर रहे हैं। प्रदेश के सभी विद्यालयों में साल भर ये कार्यक्रम आयोजित रहेगा।

आज चौरीचौरा शताब्दी महोत्सव का भव्य आगाज होगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में महोत्सव की शुरूआत होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महोत्सव का वर्चुअल उद्घाटन करके डाक टिकट जारी करेंगे।

इसके लिए मुख्यमंत्री बुधवार को ही गोरखपुर आ गए थे। इस महोत्सव में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल वर्चुअल जुड़ेंगी। यह महोत्सव पूरे साल चलेगा। अलग-अलग दिन अलग-अलग कार्यक्रम होंगे।

चौरीचौरा घटना के 100 साल पूरे होने के अवसर पर बृहस्पतिवार से साल भर तक गोरखपुर समेत प्रदेश के सभी जिलों में अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। चौरीचौरा शहीदों के सम्मान में यह अब तक का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर पहला मौका है जब समूचा प्रदेश शहीदों को सम्मान देने के लिए एक साथ आगे बढ़ा है। महोत्सव की तैयारियां बुधवार देर रात तक पूरी कर ली गईं। पर्यटन मंत्री नीलकंठ तिवारी व प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम देर रात तक शहीद स्थल पर डटे रहे।

आइये जानते है क्या है चौरी चौरा(Chauri Chaura)

चौरी-चौरा, ये घटना एक ऐसी घटना है जो इतिहास के पन्नों पर हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गई है। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फरवरी 1922 को कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। इसमें 23 पुलिस वालों की मौत हो गई थी।

इस घटना के दौरान तीन नागरिकों की भी मौत हो गई थी। इससे पहले यह पता चलने पर की चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाज़ार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई थी। इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था।

महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था। 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएँ होतीं। उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहाँ पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया, क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था। तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा ,क्योंकि उन्होंने अपराध किया था।

इसके बाद गांधीजी पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला था और उन्हें मार्च 1922 में गिरफ़्तार कर लिया गया था। असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को पारित हुआ था।

गांधीजी का मानना था कि अगर असहयोग के सिद्धांतों का सही से पालन किया गया तो एक साल के अंदर अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले जाएंगे। इसके तहत उन्होंने उन सभी वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला किया था। जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे। उन्होंने विदेशी वस्तुओं, अंग्रेज़ी क़ानून, शिक्षा और प्रतिनिधि सभाओं के बहिष्कार की बात कही। खिलाफत आंदोलन के साथ मिलकर असहयोग आंदोलन बहुत हद तक कामयाब भी रहा था।

1971 में गोरखपुर ज़िले के लोगों ने चौरी-चौरा शहीद स्मारक समिति का गठन किया। इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंचा एक मीनार बनाई। इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था। इसे लोगों के चंदे के पैसे से बनाया गया।

इसकी लागत तब 13,500 रुपये आई थी। बाद में भारत सरकार ने शहीदों की याद में एक अलग शहीद स्मारक बनवाया। इसे ही हम आज मुख्य शहीद स्मारक के तौर पर जानते हैं। इस पर शहीदों के नाम खुदवा कर दर्ज किए गए हैं। बाद में भारतीय रेलवे ने दो ट्रेन भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाई।

इन ट्रेनों के नाम हैं शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस,चौरी-चौरा दरअसल दो अलग-अलग गांवों के नाम थे। रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नाम एक साथ किया था।

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