Somnath Temple: सोमनाथ मन्दिर भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश के काठियावाड़ क्षेत्र में स्तिथ हैं। यह भारत के इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है।
पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में विस्तार से बताई गई है। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम 'सोमनाथ' हो गया।
कहा जाता हैं कि सोमनाथ मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। यह एक कुतूहल का विषय था। जानकारों के मुताबिक यह वास्तुकला का एक नायाब नमूना था। इसका शिवलिंग चुम्बक की शक्ति से हवा में ही स्थित था। कहते हैं कि महमूद गजनबी इसे देखकर प्रभाहीन रह गया था।
सबसे पहले इस मंदिर के उल्लेखानुसार ईसा के पूर्व यह अस्तित्व में था। इसी जगह पर दूसरी बार मंदिर का पुनर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिन्ध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया था। फिर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण करवाया।
इसके बाद सन् 1024 में महमूद गजनवी ने कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला कर दिया , उसकी संपत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। तब मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे हजारों लोग मारे गए थे। ये वे लोग थे, जो वहा पुजारी थे या मंदिर के अंदर दर्शन लाभ ले रहे थे और कुछ गांव के लोग मंदिर की रक्षा के लिए निहत्थे ही दौड़ पड़े थे।
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन् 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर अपना कब्जा किया तो सोमनाथ मंदिर को पाँचवीं बार गिराया गया।मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1702 में आदेश दिया कि यदि हिंदू सोमनाथ मंदिर में दोबारा से पूजा की गई तो इसे पूरी तरह से ध्वस्त करवा दिया जाएगा । आखिरकार उसने पुनः 1706 में सोमनाथ मंदिर को गिरवा ही दिया।
भारत की आजादी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने समुद्र का जल लेकर नए मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया 6 बार टूटने के बाद 7वीं बार इस मंदिर को कैलाश महामेरू प्रासाद शैली में बनाया गया। वर्त्तमान समय में सोमनाथ मंदिर जिस रूप में खड़ा है उसे उन्होंने ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था।
0 komentar:
Post a Comment