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देश अब तक कोरोना महामारी से लड़ रहा है, अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत पर दम तोड़ रही है और देश अधिकृत रूप से ऐसे रास्ते पर चल रहा है जहां हकीकत किसी हसीन सपने से बुरे सपने में तब्दील होती नजर आ रही है।modi ya yogi
इस सबके बीच भारत के शासक वर्ग पर इस नये विकास की धुन सवार हुई है, जिसकी आधी-अधूरी-सी चर्चा 2017 में शुरू हुई थी। भारत में सत्ता के दो केंद्र दंतकथाओं में शुमार हो चुके हैं।modi ya yogi
एक दौर ऐसा भी था जब अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी की जुगलबंदी जग जाहिर थी, जिसमें आडवाणी प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री ही बनकर रह गए, ठीक वैसे ही आज नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी का जलवा है।modi ya yogi
लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही दूसरी जोड़ी उभर सकती है। भारतीय राजनीति सत्ता के एक नये, मोदी बनाम योगी खेल की गवाह बन सकती है।
पिछले सप्ताह सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में देखा गया कि भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और भारत के प्रधान महंत साथ बैठे नज़र आए।modi ya yogi
सीडीएस जनरल रावत नौसेना दिवस समारोह पर अपने फौजी भाइयों के बीच न जाकर गोरखपुर में महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के वार्षिक दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनने पहुंच गए, हालांकि सेना अध्यक्ष के रूप में वे नौसेना दिवस समारोह में नौ बार भाग ले चुके हैं।modi ya yogi
सीडीएस जनरल रावत ने नौसेना दिवस समारोह की बजाय एक अर्द्ध-राजनीतिक व धार्मिक संगठन गोरखनाथ मठ की एक संस्था के समारोह को अहमियत दी। देखा जाए तो यह सेना के किसी व्यक्ति के लिए पूरी तरह बेकार है, लेकिन याद है न हम तो धुंध के रास्ते पर चल रहे हैं।modi ya yogi
वहीं बात करें प्रधानमंत्री मोदी की तो उनके लिए सेना को कितनी अहमियत है। उन्हें पता है कि हिंदुत्ववाद और सेना उनके लिए भाग्यशाली ताबीज़ जैसी हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव वे पाकिस्तान में बालाकोट पर वायुसेना के हवाई हमलों से पैदा हुई ‘राष्ट्रवादी’ लहर के बल पर ही जीते हैं।modi ya yogi
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यही वजह है कि नौसेना दिवस समारोह में सीडीएस रावत की अनुपस्थिति के तीन दिन बाद ही 7 दिसंबर को सशस्त्र बल झण्डा दिवस पर मोदी बिना मास्क लगाए ही सैनिकों को सम्मानित करने के लिए पहुंच गए। और एक सबसे अहम बिंदु है दिल्ली और लखनऊ।modi ya yogi
लखनऊ का आकर्षण
ऐसा माना जा रहा है कि एक और ताकतवर राजनीतिक मंडली उत्तर प्रदेस में तैयार हो रही है, जहां इन दिनों की महत्वपूर्ण लोग जुटने लगे हैं। आप सोच सकते हैं कि लखनऊ में एक समानांतर सत्ता-केंद्र तो नहीं सक्रिय हो गया है।modi ya yogi
इससे स्वाभाविक अनुमान यह लगाया जा सकता है कि क्या भाजपा के अंदर एक समानांतर सत्ता-केंद्र तो नहीं उभर रहा है? जरा सोचिए, कहीं आपको ‘मोदी है तो मुमकिन है’ नारे में ‘योगी है तो यकीन है’ की गूंज तो नहीं सुनाई दे रही है? इसे आप अटकलें मान सकते हैं, लेकिन भारत के राजनीतिक क्षितिज पर मोदी बनाम योगी समीकरण साफ तौर पर उभर रहा है।
2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान शायद ही किसी को उम्मीद थी कि योगी को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना जाएगा, क्योंकि न तो उन्हें 'स्टार प्रचारक' के तौर पर इस्तेमाल किया गया था,modi ya yogi
और न ही मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर कभी मैदान में उतारा गया, हकीकत में तो ज्यादातर लोगों को यही उम्मीद थी कि तत्कालीन टेलिकॉम राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ही यूपी की गद्दी संभालेंगे क्योंकि वे मोदी की पहली पसंद थे।modi ya yogi
राजनीतिक पंडितों का भी यही मत था कि मोदी के खिलाफ योगी को आरएसएस ने खड़ा किया ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि न तो कोई व्यक्ति अपरिहार्य है और न कोई व्यक्ति संगठन से ऊपर है। मोदी भी नहीं. आज यह बात सच होती नजर आ रही है।modi ya yogi
भाजपा में योगी आदित्यनाथ ही ऐसे नेता हैं जो मोदी या शाह के साये के नीचे नहीं बल्कि खुद अपने बल पर खड़े हो सकते हैं। वहीं बात अक्षय कुमार की करें तो अगर वह प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लेकर उनके करीबी बनते हैं,modi ya yogi
तो अपनी अगली फिल्म राम सेतु की शूटिंग आयोध्या में करने के लिए योगी से परमिश और आर्शीवाद लेना भी नहीं भूलते हैं। इतना ही नहीं बॉलीवुड अगर मोदी के साथ सेल्फी लेता है, तो योगी भी फिल्मी सितारों के साथ नजर आते हैं।modi ya yogi
यह मोदी की तरह ही व्यक्तिपूजा को बढ़ावा देने का ही खेल है, जिसमें मोदी महारत हासिल कर चुके हैं। सुभाष घई, बोनी कपूर, राजकुमार संतोषी, सुधीर मिश्रा, रमेश सिप्पी, तिग्मांशु धूलिया, मधुर भंडारकर,modi ya yogi
भूषण कुमार और सिद्धार्थ राय कपूर जैसे निर्माता-निर्देशक और अर्जुन रामपाल, रवि किशन जैसे अभिनेताओं ने उत्तर प्रदेश में बन रही फिल्म सिटी के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए हाल में योगी से मुंबई में मुलाक़ात की।
अपनी जगह मजबूत करने में जुटे मोदीmodi ya yogi
अपने दूसरे कार्यकाल में पीएम मोदी कट्टरपंथी बहुसंख्यकवादी नेता वाली अपनी छवि से मुक्त होने की कोशिश में जुटे हुए हैं। अब उन्हें तिलक धारण किए नहीं बल्कि मोर और तोते को दाना खिलाते देखा जा रहा है।modi ya yogi
अब हल्के रंग वाले कपड़ों में वो खुद को एक मनमौजी और दार्शनिक किस्म के परंपरा के रूप में पेश करने की कोशिश में लगे हुए हैं।
लेकिन योगी ठेठ हिंदुत्व प्रचारक आइकॉन हैं, राम मंदिर भूमि पूजन के समय मोदी के साथ योगी की मौजूदगी बहुत कुछ दर्शाती है उस अवसर पर मोदी के अलावा केवल दो और अहम राजनीतिक हस्तियां वहां मौजूद थीं,modi ya yogi
अरएसएस सरसंघ चालक मोहन भागवत और यूपी सीएम योगी। यहां तक की अमित शाह भी इस ऐतिहासिक घड़ी पर मौजूद नहीं थे। जिसकी छवि हरेक ‘निष्ठावान’ हिंदू के मानसपटल पर हमेशा के लिए दर्ज हो जाने वाली थी, एक ऐसी भावनात्मक घड़ी जिसकी याद दशकों तक कई वोट दिलवाती रहेगी।
योगी मोदी के मुक़ाबले अपने व्यक्तित्व की कमियों को दूर करने का कोई भी अवसर कभी भी गंवाना नहीं चाहेंगे. मोदी की तरह वे भी अपनी छवि एक ऐसे नेता के रूप में बनाने में जुटे हैं, जो किसी के दबाव में नहीं है।
ब्रह्मचारी होने के नाते योगी अपने पिता की अन्त्येष्टि में भी नहीं गए और एक पत्र में अपने पिता को उन्होंने ‘पूर्वाश्रम के जन्मदाता’ कहा, यानी उनके ‘पूर्व संसार’ के पिता, जब उन्होंने संन्यास नहीं लिया था।
जिस दिन उनके पिता का निधन हुआ, योगी अपने ‘राजधर्म’ से बंधे अपने दफ्तर में काम करते रहे और कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन को तोड़ने की कोशिश नहीं की।
चाहने वालों का आधार
कुछ भाजपाई योगी आदित्यनाथ को जिस तरह ‘महाराज जी’ कह कर संबोधित करते हैं वह एक तरह की चेतावनी जैसी लगती है। जैसे कि भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद तरुण विजय ने अपने ब्लॉग में उन्हें संबोधित किया।
तरुण विजय का मानना है कि योगी ने ‘एक जन नेता के तौर पर आदर्शों का असंभव प्रतिमान स्थापित किया है’, और वे इस बात से नाखुश थे कि मीडिया उनकी महानता को पर्याप्त रूप से प्रस्तुत नहीं कर रहा है।
सरकार में भी योगी के चाहने वाले कम नहीं हैं। अजित डोभाल ने इस बात के लिए उनका महिमागान करने में कोई संकोच नहीं किया कि अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद योगी ने उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था बड़ी मजबूती से बनाए रखी। यह और बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से इस फैसले के बाद शांति बनाए रखने की अपील की थी।modi ya yogi
सत्ता के ये दो केंद्र 2021 से 2024 के बीच या तो और मुखर-प्रखर होकर उभरेंगे या दोनों के बीच सुलह कोई जमीन खोज ली जाएगी। सिंहासन के इस खेल में देखने वाली दिलचस्प बात यह होगी कि अमित शाह का क्या हश्र होता है, कहीं उनका हाल भी लाल कृष्ण आडवाणी की तरह तो नहीं हो जाएगा!
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