जेएनयू में क्यों मचा है गदर?


                जेएनयू में क्यों मचा है गदर?


  • राजनीति का अखाड़ा बना JNU!                                         
  • बार-बार सुलग रहा जेएनयू
  • बार-बार भड़क रहे छात्र नेता
  • क्या है छात्र नेताओं की मांग
  • छात्र क्यों कर रहे हैं आंदोलन
  • सरकार से किस बात से नाराज हैं छात्र
  • क्या जायज है जेएनयू के छात्रों की मांगें?
  • छात्र नेता क्यों खराब कर रहे छात्रों का भविष्य?
  • मांगों पर आश्वासन के बाद भी क्यों उग्र हैं छात्र!
  • वर्ल्ड रैंकिंग में 301वें स्थान पर फिसला जेएनयू
  • जेएनयू की बर्बादी के लिए जिम्मेदार कौन



हमेशा सुर्खियों में रहने वाला जेएनयू एक बार फिर विवादों में हैं. इस बार ये बवाल फीस वृद्धि को लेकर हुआ है.. बढ़ी फीस से नाराज उग्र छात्रों ने ना केवल सड़क पर आंदोलन किया.. बल्कि हिंसक प्रदर्शन भी किया.. उग्र छात्र नेताओं ने ना केवल आम आदमी से बल्कि मीडिया वालों से भी बदसलूकी की.. वहीं छात्रों ने पुलिस की बैरीकेडिंग भी तोड़ दी.. छात्र संसद तक मार्च निकालना चाहते थे.. छात्रों के प्रदर्शन से ना केवल दिल्ली जाम हुई. बल्कि दिल्ली की लाइफलाइन मेट्रो को भी बार बार बंद करना पड़ा.. आइये जानते हैं क्या है जेएनयू का विवाद.. 




जेएनयू में पिछले 11 दिनों से लगातार प्रदर्शन किया जा रहा है.. जेएनयू की पढ़ाई ठप है और छात्र सड़क पर हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं.. छात्र, पुलिस के आश्वासन को भी नहीं मान रहे हैं... आपको बता दें कि ये छात्र जेएनयू के यूनिवर्सिटी प्रशासन द्वारा हॉस्टल और मेस की फीस बढ़ाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.. जेएनयू के छात्र चाहते हैं कि जो पहले फीस का स्ट्रक्चर था उसे ही बरकरार रखा जाए.. जेएनयू में छात्रों के बवाल को देखते हुए केंद्र सरकार ने बढ़ी हुई फीस को आंशिक रूप से वापस ले लिया.. लेकिन छात्र अभी भी आंदोलनरत हैं.. छात्रों ने ना केवल सड़क पर हिंसक प्रदर्शन किया.. बल्कि संसद तक मार्च निकालने की भी कोशिश की.. हालांकि जेएनयू प्रशासन की सख्ती से छात्र नेता संसद तक नहीं पहुंच सके और उन्हें वही रोक दिया गया... बता दें कि जेएनयू प्रशासन ने एक सीटर कमरे वाले हॉस्टल का मासिक किराया 20 रुपए से बढ़कर 600 रुपए कर दिया था.. वहीं दो लोगों के लिए कमरे का किराया 10 रुपए से बढ़कर 300 रुपए कर दिया था.. इसी बात से छात्रों ने हंगामा काट दिया.. हालांकि छात्रों के हिंसक प्रदर्शन के बाद इसमें बदलाव किया गया और इसे क्रमश: 300 रुपये और 150 रुपए कर दिया गया... जेएनयू प्रशासन का कहना है कि कमरों के किराए तीन दशक से नहीं बढ़े थे... बाकी ख़र्च एक दशक से लंबे समय से नहीं बढ़े थे.. ऐसे में ये कदम उठाना जरूरी था.. वहीं छात्र अब भी पुरानी फीस लागू करने पर अड़े हुए हैं..



वहीं जेएनयू के छात्रों के प्रदर्शन से सोमवार को दिल्ली पूरी तरह से ठप हो गई.. दिल्लीवालों को जबरदस्त ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ा.. खास तौर पर वे लोग जो अपने ऑफिस केंद्रीय दिल्ली से दक्षिणी दिल्ली की तरफ जा रहे थे.. वहीं मेट्रो यात्रियों के लिए भी सफर कम मुसीबत भरा नहीं रहा... छात्रों के प्रदर्शन को देखते हुए सफदरजंग हवाई अड्डे के करीब जोर बाग मेट्रो स्टेशन बंद रहा... वहीं जाम को देखते हुए बड़ी संख्या में ऑफिस से घर लौटने वाले कर्मचारी निराश नजर आए.. वहीं जेएनयू को लेकर एक बड़ी खबर में खुलासा हुआ है.. कि देश के अग्रणी विश्वविद्यालय में कभी शुमार रहा जेएनयू पिछले कुछ सालों में उपद्रियों के कारण रैंकिग में भी नीचे आ गया है.. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की सूची में जेएनयू का स्थान फिसलकर 301 पर पहुंच गया है.. आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि टाइम्स वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में जेएनयू का स्थान अब 301वां है.. कहने का मतलब ये है कि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की टॉप 300 यूनिवर्सिटीज में जेएनयू का कहीं नाम नहीं है.. वहीं, वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020 से इस बार जेएनयू को बाहर ही निकाल दिया गया है.. जबकि दिल्ली यूनिवर्सिटी जो पिछले साल 487 रैंक पर थी.. उसने सुधार किया है और वो 474 रैंक पर आ गई हैं..




अब सवाल ये है कि आखिर क्या कारण है कि जेएनयू लगातार वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में पिछड़ रहा है.. इसका सीधा सा जवाब जेएनयू का राजनीतिकरण है.. जेएनयू अब राजनीति का अखाड़ा बन गया है.. 2016 में जेएनयू के छात्रों के द्वारा लगाए गए आपत्तिजनक नारों ने जेएनयू का नाम खराब किया है.. हालांकि ऐसा नहीं है कि जेएनयू में अच्छे छात्रों की कमी है.. जेएनयू में बहुत से ऐसे छात्र है जिनका राजनीति से कोई मतलब नहीं है.. वो गरीब है और उनका मुख्य मकसद पढ़ना है.. लेकिन जेएनयू के बार बार होने वाले बवाल से इन छात्रों का भविष्य अधर में चला गया है.. अब तो देश में ऐसी भ्रांति फैल गई है कि लोग सोचते हैं कि जेएनयू में छात्र नहीं बल्कि अलगाववादी पढ़ते हैं.. हालांकि सच ये है कि जेएनयू वो विद्यालय है जहां से पढ़कर निकले एस. शंकर आज भारत के विदेश मंत्री हैं... वहीं अर्थशास्त्र का नोबेल पाए अभिजीत बनर्जी भी जेएनयू से ही पढ़कर निकले हैं.. वहीं कम्यूनिष्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी भी जेएनयू से ही पढ़े हैं.. अब सवाल उठता है कि वो कौन सी शक्तियां हैं जो जेएनयू और छात्रों का नाम खराब कर रही हैं.. तो उसकी जड़ में यहां के उपद्रवी और दबंग छात्रों को मिला राजनीतिक संरक्षण है.. लेफ्ट और कांग्रेस ने जेएनयू के आंदोलनकारी छात्रों को अपना समर्थन दिया हुआ है.. आपको याद होगा जब जेएनयू में 2016 में भारत तेरे टुकड़े होंगे वाला नारा लगा था.. तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी छात्रों का समर्थन करने वहां पहुंच गए थे...



एक लोकतांत्रिक देश में अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करना कतई गलत नहीं है.. लेकिन अपने राजनीतिक हितों के लिए गरीब छात्रों का भविष्य खराब करना गलत है.. जेएनयू में फीस बहुत कम थी जिसकी समीक्षा करना जरूरी था.. आपको बता दें कि जेएनयू में करीब 8,000 छात्र पढ़ते हैं.. इसमें करीब 5,000 होस्टल में रहते हैं.. इन छात्रों की सालाना फीस मात्र 219 रुपये है... JNU में भारत सरकार 3 लाख रुपये प्रति छात्र खर्च करती है.. यहां पर 2015-16 में प्रति छात्र पर 12 लाख रुपये खर्च किए गए.. साल 2014-15 की बात की जाए तो सरकार ने प्रति छात्र 11.26 लाख रुपये खर्च किए थे.. बता दें कि 2016 में जेएनयू में भारत के खिलाफ विवादास्पद भाषण देने के बाद जेएनयू में फंडिंग रोकने की लोगों ने सरकार से अपील की थी.. फिलहाल जेएनयू विवाद में इतना तय है कि छात्रों का आंदोलन राजनीति से प्रेरित है... सरकार ने फीस में आंशिक वृद्धि की है जो कहीं से भी गलत नहीं जान पड़ता है.. यहीं नहीं सरकार ने राहत देते हुए बढ़ी हुई फीस को आधा भी कर दिया है.. फिलहाल देखना अहम होगा कि जेएनयू विवाद का हल केंद्र सरकार किस प्रकार से निकालती है.

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