Taliban History: जानिए क्या हैं तालिबान और इतना शक्तिशाली कैसे ?

 Afghanistan में 20 साल बाद एकबार फिर से Taliban ने बंदूक की नोंक पर वापसी कर ली है। विभिन्न शहरों के बाद कल तालिबान के लड़ाकों ने काबुल की ओर रुख किया। विषम हालातों के बीच Afghanistan के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कल ही काबुल से निकल गए थे।

क्या है तालिबान ?

दशकों से Afghanistan की जमीन को जंग का मैदान बनाकर रखने वाले Taliban ने खौफनाक ताकत हासिल कर ली है। तालिबान का उदय वर्ष 1990 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ जब Afghanistan में सोवियत संघ (Soviet Union) की सेना वापस जा रही थी। इसके बाद तालिबान ने Afghanistan के कंधार शहर का अपना पहला केंद्र बनाया था और आज फिर तालिबान ने वापस कंधार शहर की कमान अपने हाथ में ले ली है। 1989 में मुजाहिदीन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसी मुजाहिदीन का कमांडर बना पश्तून आदिवासी समुदाय का सदस्य- मुल्ला मोहम्मद उमर। उमर ने आगे चलकर तालिबान की स्थापना की। 1996 से 2001 Taliban  ने Afghanistan के लगभग तीन-चौथाई हिस्से पर अधिकार कर लिया और तो और इस्लामी कानून की सख्त व्याख्या को लागू किया।
साल 1994 में तालिबान Afghan Civil War में प्रमुख गुटों में से एक के रूप में उभरा।

आखिर ये तालिबान के लोग कौन हैं और इनका इतना खौफ क्यों है?

ताजा लड़ाई में Pakistan , Taliban की पूरी मदद कर रहा है। पाकिस्तान इस बात से हमेशा इनकार करता रहा है कि Taliban के उदय के पीछे उसका हाथ है। लेकिन यह सभी जानते हैं कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ली और इसी वजह से अफगानिस्‍तान की ओर से पाकिस्‍तान के खिलाफ प्रतिबंध की मांग उठ रही है।
'Taliban ' शब्द का पश्तून में अर्थ है ‘छात्र’ और इससे संगठन के सदस्यों की ओर इशारा किया जाता है , जिन्हें उमर का ‘छात्र’ माना गया है। साल 1994 में ओमार ने इसी कंधार में तालिबान को बनाया था तब उसके पास केवल 50 समर्थक थे और धीरे धीरे कर के ये पुरे देश में फैलने लगा। सितंबर 1995 में उन्होंने ईरान से लगे हेरात पर कब्जा किया और फिर साल 1996 के दौरान कंधार को भी अपने नियंत्रण में लिया और राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। रब्बानी Afghanistan मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने सोवियत ताकत का विरोध किया था। साल 1998 तक करीब 90% अफगानिस्तान पर तालिबान काबिज था।

'तालिबानी फरमानों' का दौर

शुरुआती दौर में अफगानिस्तान ने तालिबान का स्वागत किया और समर्थन भी किया। इसे मौजूदा हलात के समाधान की शक्ल में देखा गया। फिर समय के साथ धीरे-धीरे कड़े इस्लामिक नियम लागू किए जाने लगे। हर जुर्म की सज़ा मौत घोषित कर दी गई , चोरी से लेकर हत्या तक के दोषियों को सरेआम मौत की सजा दी जाने लगी। समय के साथ रुढ़िवादी कट्टरपंथी नियम थोपे जाने लगे। टीवी और म्यूजिक को बैन कर दिया गया, लड़कियों को स्कूल जाने से मना कर दिया गया, महिलाओं पर बुर्का पहनने का दबाव बनने लगा।

अमेरिका से रिश्ते

दुनिया की नजरों में तालिबान आया जब अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर (World Trade Center) पर आतंकी हमले के बाद। जब अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन (Osama Bin Laden) 9/11, 2001 के आतंकी हमले की प्लानिंग तालिबान की पनाह कर रहा था। अमेरिका ने उससे (Afghanistan) ओसामा को सौंपने के लिए कहा लेकिन तालिबान ने इनकार कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में घुसकर मुल्ला ओमार की सरकार को गिरा दिया। ओमार और बाकी तालिबानी नेता पाकिस्तान भाग गए। यहां उन्होंने फिर से अफगानिस्तान लौटने की तैयारी शुरू कर दी।
पिछले साल फरवरी में अमेरिका और तालिबान ने एक ऐतिहासिक समझौता किया जिसमे अमेरिकी सेना को 14 महीने में अफगानिस्तान छोड़ना था और इसी के साथ उसे अलकायदा जैसे संगठनों को पनाह देना खत्म करना था। इस बीच तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच जंग खत्म करने के लिए बातचीत होनी थी जिसका ठोस परिणाम नहीं निकल सका। तालिबान आतंकियों से संपर्क खत्म करने का वादा भी नहीं निभा सका। अब अमेरिकी सेना के देश छोड़ने के साथ ही तालिबान की क्रूरता अपने चरम पर पहुंचने लगी है। पत्रकारों, ऐक्टिविस्ट्स, अधिकारियों को टार्गेट करके मारा जा रहा है।

कितना ताकतवर है तालिबान ?

करीब 20 साल तक जंग के बाद अमेरिका जैसी महाशक्ति ने भी अपने हाथ यहां से वापस खींच लिए है और मुमकिन है तालिबान इसे अपनी जीत समझ रहा है। BBC की रिपोर्ट में NATO के आकलन के हवाले से दावा किया गया है कि तालिबान आज पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरा है जिसमे अब 85 हजार लड़ाके शामिल हैं। Afghanistan का कितना हिस्सा पूरी तरह से उनके हाथ में है, यह समझना मुश्किल है लेकिन यह 20-30% के करीब हो सकता है।

एक तरफ तालिबान ने सीधे वार्ता का रास्ता पकड़ा तो दूसरी ओर बड़े शहरों और सैन्य बेस पर हमले की बजाय छोटे-छोटे इलाकों पर कब्जे की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया जिसके चलते अप्रैल 2021 में अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाइडेन के ऐलान के बाद तालिबान ने मोर्चा खोल दिया और 90 हजार लड़ाकों वाले तालिबान ने 3 लाख से अधिक अफगान फौजो को सरेंडर करने पर मजबूर क्र दिया।

गृहमंत्री ने कहा, 'शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण'

राष्ट्रपति अशरफ गनी के चीफ ऑफ स्टाफ ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लोगों से अपील की है कि परेशान न हों, कोई चिंता की बात नहीं है और काबुल में स्थिति नियंत्रण में है। कार्यकारी गृहमंत्री अब्दुल सत्तार मिर्काजवाल ने कहा है कि काबुल पर हमला नहीं होगा और सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से होगा। उन्होंने कहा कि शहर की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

 

 

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