यूपी में होने जा रहे पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण तय करते समय सबसे पहले यह देखा गया कि वर्ष 1995 से अब तक के पांच चुनावों में कौन सी पंचायतें अनुसूचित जाति (एससी) व अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित नहीं हो पाई हैं। इन पंचायतों में इस बार प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण लागू किया गया है। इस नए फैसले से अब वे पंचायतें जो पहले एससी के लिए आरक्षित होती रहीं और ओबीसी के आरक्षण से वंचित रह गईं थीं। वहां ओबीसी का आरक्षण किया गया और इसी तरह जो पंचायतें अब तक ओबीसी के लिए आरक्षित होती रही थीं वे अब एससी के लिए आरक्षित हुई हैं।
इसके बाद जो पंचायतें बचीं, उन्हें आबादी के घटते अनुपात में चक्रानुक्रम के अनुसार सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित किया गया। इन पांच चुनावों में महिलाओं के लिए तय 33 प्रतिशत आरक्षण का कोटा तो पूरा होता रहा, मगर एससी के लिए 21 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे के हिसाब से कई ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायतें आरक्षित नहीं हो पाईं थीं। इस बार कोई भी पंचायत जातिगत आरक्षण से वंचित नहीं रही। प्रदेश के पंचायतीराज विभाग द्वारा तैयार प्रस्ताव के तहत वर्ष 2015 में हुए पिछले पंचायती चुनाव में तत्कालीन सपा सरकार द्वारा किए गए प्रावधान को हटा दिया गया था। पिछली व्यवस्था में ऐसी कई पंचायतें बची रह गईं थीं जिन्हें न ओबीसी के लिए आरक्षित किया जा सका और न ही अनुसूचित जाति के लिए...। लिहाजा, इस बार चक्रानुक्रम के तहत यह नया फार्मूला अपनाया गया।
प्रदेश के चार जिलों गोण्डा, सम्भल, मुरादाबाद और गौतमबुद्धनगर में परिसीमन कानूनी अड़चनों की वजह से न हो पाने की वजह से 2010 के पंचायत चुनाव का आरक्षण लागू किया गया था। इस बार इन चारों जिलों में नए सिरे से परिसीमन करवाया गया है। इसी आधार पर अब इन चारों जिलों में भी नए सिरे से आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई है। इस बार प्रदेश के सभी 75 जिलों में एक साथ पंचायतों के वार्डों के आरक्षण की नीति लागू हुई है। इसके साथ ही इस बार आरक्षण तय करते समय इस बात पर भी गौर किया गया कि वर्ष 1995 से अब तक हुए पांच त्रि-स्तरीय पंचायत चुनावों में ऐसी कौन सी पंचायतें हैं, जो अभी तक जातिगत आरक्षण से वंचित रह गई हैं। इनमें ग्राम पंचायतें, क्षेत्र व जिला पंचायतें शामिल हैं।
पहली बार 1995 में हुई थी व्यवस्था
वर्ष 1995 में पहली बार त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था और उसमें आरक्षण के प्रावधान लागू किए गए थे। मगर तब से अब तक हुए पांच पंचायत चुनावों में प्रदेश की करीब 18 हजार ग्राम पंचायतें, करीब 100 क्षेत्र पंचायतें और लगभग आधा दर्जन जिला पंचायतों में क्रमश: ग्राम प्रधान, क्षेत्र व जिला पंचायत अध्यक्ष के पद आरक्षित होने से वंचित रह गए।
0 komentar:
Post a Comment